हेल्लो मेरे इंटरनेट के लोग, कैसे हो? काफी दिनों बाद आपसे मुख़ातिब हो रहा हूँ। दरसल, आलस्य ने हमें घेर रखा है। हमारी कल्पना को बाँध रखा है। इसी सिलसिले में न हम हम रह पाये और आप से मुख़ातिब न हो पाये। मेरे द्वारा लिखे गये इन सारी चीजों का कोई पाठक होगा तो मेरे लिये उससे खुशी की बात और क्या हो सकती है।
अब आते हैं सीधे मुद्दे पर।
तो दिल्ली, देश के दिल में मेरे द्वारा अतिक्रमण किये हुये चार साल हो चुके हैं। और इसके odd even वाले हवा में साँस लेते हुये अभी भी जिंदा हूँ। चार साल के तज़ुर्बे के बावजूद अभी भी मैं कुछ लोगों द्वारा मामू बना दिया जाता हूँ। तो आज आपको बताऊंगा कि दिल्ली में मैं किस किस तरीकों से लूटा जा चुका हूँ।
★आप दिल्ली में हो और अगर कोई अनजान व्यक्ति / मोहतरमा आपको excuse me कह के बुलाये तो बहरे बन जाना। और ज्यादा आन पड़े तो अंधे भी।
1- दिल्ली के टसनी भिखारी लोग: तो मैं बता दूँ कि दिल्ली के भिखारियों से कभी पंगा मत लेना। ये जुबां से झूठी दुआ ही नहीं बल्कि आपको चैलेंज करते हुये भीख मांगते हैं। "अगर एक बाप की औलाद हो तो इस गरीब की मदद कर।" "अगर दिल में थोड़ी सी भी लाज़ बची हो तो इस भूखे की मदद कर।" फिलहाल इनके मांग वाजिब हो सकते हैं। ये तो सभी को पता है कि इनका अपना गैंग होता है। ये लोग जहाँ कहीं प्यार में गुटरगूँ कर रहे प्यार के पंछियों को देख लिये या बस यूं ही साथ में कोई मोहतरमा आपके साथ हो तो ये और भी पीछा नहीं छोड़ते। इस काम के लिये बच्चों वाले महकमे को अच्छी सी ट्रेनिंग दी जाती है। फिलहाल ये पैसे लेने वाले लोग हर जगह पाये जाते हैं।
2:अब बात करते हैं उन लोगों की जो मेट्रो का पता पूछते हैं और फिर आपसे पैसे की गुजारिश भी। मेट्रो स्टेशन पर लुटेरों की भरमार है। मैं आपको एक किस्सा बताता हूँ। एक बार राजीव चौक मेट्रो स्टेशन के atm से मैं पैसे निकाल रहा था। उसी दौरान एक अधेड़ व्यक्ति, दिखने में ठीक ठाक मेरे पीछे आता है। मैंने सोचा ज़नाब को पैसे निकालने होंगे इसलिये atm के दरबार मे आये हुये हैं। तो ज़नाब ने पूछा कि," पैसे निकल रहे हैं?" मैंने कहा," हाँ।" "अच्छा बेटा आपके पास सौ का चेंज होगा?" ज़नाब ने पूछा। मैंने उसे 50-50 के दो कड़क नोट थमा दिये। इस आस में कि 100 का नोट उस पार्टी से आयेगा। लेकिन वो तो सौ का चेंज लिये और मुस्कुराते हुये चल दिये। मैं तो भौंचक्क खड़े के खड़े रह गया। दूसरा वाकया बताता हूँ। मूलचंद मेट्रो पर मैं मंजिल के लिये भागे जा रहा था। तभी एक लड़के ने अचानक रोककर पूछा कि आपके पास कुछ रुपये होंगे? मेरे पास मेट्रो जाने के लिये भी पैसे नहीं हैं। उस समय मैंने उसको 50 रुपये थमा दिये थे शायद। इसी सोच में कि मेरी जापान की यात्रा में इसकी दुआ लगे।
3:अब बात करते हैं भारत के झंडे वाला बैज को आपके छाती पर जबरजस्ती पहनाने वाली आंटी लोगों की. सबसे पहली बात कि इन आंटियों से सावधान रहना. ये आंटियां आपके अस्मत पे हाथ डाल सकती हैं और आप कुछ नहीं कर सकते. एक अपना वाकया बताता हूँ. मेट्रो के आस पास इनको अक्सर पाया जाता है. मैं एक दिन जल्दी में था लेकिन मेट्रो के दरवाज़े पर तैनात एक आंटी ने मेरे छाती को पकड़ने कि नाकाम कोशिश की. मैं स्मार्ट निकला और तुरंत अपने हाथों से उनके हाथों को अपने छाती पर से हटाया और चलते बना. लेकिन उस वाकये से ये बात पता चल गयी कि इनका हाथ कहाँ तक जा सकता है. एक और वाकया आपको बताता हूँ. ये बात तब की है जब मेरा इनसे पहली बार सामना हुआ था. प्रगति मैदान में हर साल अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक मेला लगता है. मैं अपनी मित्र के साथ उस पुस्तक मेला में जा रहा था. प्रगति मैदान मेट्रो से जैसे ही उतरा दो आंटियों ने हमे घेर लिया और भारत के झंडे वाले बैज को हमें पहना दिया. मुझे लगा कि ये अच्छी बात है भारत के झंडे वाला बैज से मेरे अन्दर देशभक्ति वाली आत्मा जाग गयी. हमने बड़ी ही नम्रता के साथ शुक्रिया कहा और आगे जाने के लिये जैसे कदम बढ़ाया आंटी ने बोला, "बेटा कुछ चंदा तो दे दो." मैंने सोचा चलो ठीक है कोई बात नहीं और मैंने 20 रुपये निकाले और थमा दिए आंटी को. "बेटा ये क्या दे रहे हो?" आंटी ने प्रश्न किया. "कम से कम पचास रूपए तो बनते है?" आंटी ने फिर बोला. आज हमारे देश में किसी को अगर इच्छा से कुछ दो भी उसे लेने वाला उसकी कद्र कत्तई नहीं करेगा. उपर से आपसे ही लड़ पड़ेगा. आज कल भिखारी को 2 रूपये दो तो वो आपसे 2 रुपये का सिक्का लेगा ही नहीं और आपको गाली भी दे देगा. फिलहाल यहाँ तो आंटी थीं. इनसे बहस तो नहीं कर सकते थे. और अचानक आपसे कुछ बोलता है तो कभी कभी तुरंत दिमाग नहीं चलता है. जिनका तुरंत चलता है, मैं उनको दुआ देता हूँ. तो मैंने 50 रूपये थमा दिये आंटी को. लेकिन उस दिन उस झंडे को लगाने से मुझे देशभक्ति की नहीं बल्कि "आंटी ने तो तुझे टोपी पहना दिया" वाली भावना आ रही थी. तो भाई लोग सावधान!
4:अब बात करते हैं कुछ ऐसे समूह की जो शायद सही भी हो सकती है. लेकिन मेरे साथ ये वाकया दो बार हुआ है इसलिये मेरा इनपर से भी विश्वास उठ गया है. आपको हाल ही में हुये एक घटना के बारे में बताता हूँ. हम चारों मित्र अपने वापसी के रस्ते पर जा रहे थे. तभी एक अधेड़ लगभग 50 के करीब उम्र, वाला व्यक्ति हमसे बोलता है "भाई साहब आपको (******* भाषा) आती है?" मैं रुक गया और मेरे दूसरे दोस्त भी रुक गये. वह व्यक्ति बोला "हम यहाँ काम की तलाश में आये हुए थे. यहाँ आये तो सूबेदार ने हमें धोखा दिया. हमारे पास खाने के लिये पैसे नहीं हैं. मेरे साथ मेरा परिवार भी है. आप अगर मदद कर दोगे तो छोटे नहीं हो जाओगे...." एक समय लगा कि ये बन्दा सही बोल रहा है लेकिन फिर मुझे याद आया कि ऐसी ही हूबहू कहानी मैंने पहले भी सुनी थी और उस समय मैंने 100 रूपए थमा दिये थे. लेकिन इस बार हम लोगों से साफ़ मना दिया. अगर ये सही भी बोल रहे होंगे तो भी उनपर विश्वास कर पाना कठिन था. और ऐसा कतई नहीं होता कि भाई साहेब 10-20 में मान जाते.
तो ये थे कुछ वाकये जो मैंने आपसे साझा किया. ये सिर्फ इतना ही नहीं है. राजीव चौक, राम कृष्ण मेट्रो आदि जगहों पर भी "एक्स कियूज मी!" कहकर आपसे पैसे ऐंठने वाली युवतियां मिल जायेंगी. इसके अलावां भी बहुत अलग अलग तरीके के लुटरों से आये दिन आप भी मुख़ातिब होते होंगे.
इनसे बचने के उपाये क्या हो सकते हैं इसके बारे में बात करते हैं.
1: "एक्स कियूज मी!" वाले किसी भी चीज़ को जहाँ तक हो सके ध्यान देकर भी एकदम ध्यान मत देना. ऐसे लोगों के पास भी मत फटकना.
2: पार्कों, स्टेशनों इत्यादि वाले जगहों पर ख़ास सावधानी बरतें. किसी महिला मित्र के साथ आप हों तो विशेष सावधानी बरतें. ख़ास तौर पर छोटे उस्तादों से.
3: और तो आप खुद ही स्मार्ट हो लेकिन आपसे स्मार्ट आपके पॉकेट पे नज़र रखने वाले लोग हैं. बच कर रहना और सावधान, चौकन्ना भी.
और आखिर में ये कहते हुए मैं इस ब्लॉग को ख़तम करूँगा कि "दिल्ली दिलवालों का शहर है" इसको महसूस अभी तक नहीं किया है लेकिन इस पर विश्वास जरूर है. आप जहाँ रहो वहां की आबो हवा में साँस लेना सीख लो. तभी मज़ा है नहीं तो बस आपको हर चीज़ से शिकायत रहेगी. इस ब्लॉग को लिखने को मकसद दिल्ली शहर को बदनाम करने का कतई नहीं है. मैंने अपने अनुभव को मात्र साझा किया है.
और भी कुछ है . मेट्रो पे टिन का डब्बा लिये खड़ा "कैंसर पीड़ितों के लिये" वाला व्यक्ति. मेट्रो पे लाठी के सहारे पेन बेचते हुए "हिलते हुये बूढ़े ज़नाब". सड़क के डिवाइडर पर कुछ नंबर लिखे हुये लैमिनेटेड कागज को पकड़ के बैठा हुआ "मटमैला अधेड़", "राजीव चौक के कूड़ेदानों से खाने के तलाश करता हुआ शायद "एक स्मैकिया"........
★ "भीख माँगना" "भिक्षा माँगना" "भीख देना" "दान देना": अपने दरवाज़े पर जब कोई भिखारिन "दई दे ए बिचिवा" कर दरवाज़े पर चिल्लाती है तो अन्दर से हम कुण्डी लगाकर शांत हो जाते हैं. या फिर उस भिखारिन को दुत्कारकार भगा देते हैं. पर जब कोई बाबा घंटी बजाते हुए आपके गली में दस्तक देता है तो हम "अनाज, तेल, रूपए आदि को प्लेट में लेकर दरवाज़े पर आ जाते हैं. और अपने दरवाज़े पर उनके दर्शन के लिये इंतज़ार खड़े रहते हैं. यही विडंबना कह लीजिये या फिर हमारा अपना विश्वास.