उनकी यादों में जलते जलते लोगों ने मुझे चिराग कहना शुरू कर दिया।
अरे हमने भी उसके अंधियारे को खुद का आईना बना लिया।
खुशी हो या गम आईना बस एक भाव बयाँ करता कि तुम नहीं हो अब कहीं नहीं हो।
तेरे सर पर चिराग ने खुद को जलाकर क्या किया?
बस अंधेरा दिया बस अंधेरा।
उनकी यादों की तपिश, चिराग से भी ज्यादा तपती है।
अब अंधेरे से भी ज्यादा क्या?
रो जाऊं या फिर मुस्कुराऊँ?
अब अंधेरे में हो चला ये मन अंतरिक्ष सा शून्य।.......
फिर कभी मुस्कुरायेंगे, इस कारसाज़ दुनिया को अपने ग़मों को छिपाये फिर से गले लगायेंगे।
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