तेरी आँखों की काली पुतलियों में हमने खुद को पाया।
तेरी बहती आँसुओं में हमने खुद को पाया।
तेरी हर साँसों में खुद को जीता पाया।
तेरी हर धड़कन में खुद को धड़कता पाया।
तेरी हर मुस्कान में खुद मुस्कुराया।
फिर न जाने कब तुझसे मुहब्बत हो गयी।
तेरी झलक मेरी चाहत बन गयी।
धड़कने तुझसे मिलाने को मेरी तड़प बढ़ गयी।
तेरी झलक दिल की सुकून बन गयी।
तेरे संग की गई बातें मेरी खुशी बन गयी।
तेरी यादें अकेले सफर की हमसफ़र बन गयीं।
फिर अचानक वो दिन आया,
नज़रें वो पुरानी अब कुछ अजनबी सी बनने लगीं।
आँखों की तेरी अश्क़ों में अब खुद का आईना न पाया।
अपना सा लगने वाला कोई
अजनबी बन मुझसे, फिर कभी भी न मिल पाया।
खता कोई हो गयी थी मुझसे शायद कहीं ।
इसी शायद में हमने भी उनके संग बिताये हसीन यादों को अपना हमसफ़र बना लिया है।
वो जहां होंगे खुश ही होंगे, हमने तो उनकी काली पुतलियों में अपना मुस्कुराता आईना निहार लिया है।
Thursday, June 8, 2017
आँखों की काली पुतलियां
Tuesday, June 6, 2017
चिराग और अंधेरा।
उनकी यादों में जलते जलते लोगों ने मुझे चिराग कहना शुरू कर दिया।
अरे हमने भी उसके अंधियारे को खुद का आईना बना लिया।
खुशी हो या गम आईना बस एक भाव बयाँ करता कि तुम नहीं हो अब कहीं नहीं हो।
तेरे सर पर चिराग ने खुद को जलाकर क्या किया?
बस अंधेरा दिया बस अंधेरा।
उनकी यादों की तपिश, चिराग से भी ज्यादा तपती है।
अब अंधेरे से भी ज्यादा क्या?
रो जाऊं या फिर मुस्कुराऊँ?
अब अंधेरे में हो चला ये मन अंतरिक्ष सा शून्य।.......
फिर कभी मुस्कुरायेंगे, इस कारसाज़ दुनिया को अपने ग़मों को छिपाये फिर से गले लगायेंगे।
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