वक़्त बदल गया बदल गया है ये ज़माना
अरे हम भी तो बदल लिए फिर न जाने कुछ खो सा गया
अकेले तन्हाई में हमने जो मज़े लिए ज़िन्दगी के
कविताओं से शांत किया करते थे मचलते इस मन को
लिख कर कुछ करके कलाकारी शांत किया करते थे इस मन को
फिर न जाने क्यों ये करवट आयी और ये सब कहीं सो सी गयी
अभी कमी नही कोई खुशियों की
जगह नही और कोई गम की
फिर भी लगी रहती एक बेचैनी छायी
जैसे खुले धूप में मौसम है बौराई
मन करता है कि फिर से एक बार उन पन्नो को पल
तन्हाई अपनी जानेजिगर से फिर से गले मिलूंबक्श देना मेरी जिंदगी जो तेरी खातिर
पढ़ न सका गीतों की पंक्तियाँ
न जाने क्यों तेरे बिना ही ये गीत आती है
कहतीं हैं मुझसे वही चंद पंक्तियाँ
अये मुसाफिर, "एक बार हो जाए..... फिर वही. :)
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