अंग्रेजों के अत्याचार से देश बड़ी बीमार थी.
कुछ के कमर झुकते थे, कुछ के झुका दिए जाते थे
गर कोई न करता था बर्दाश्त उस अत्याचार को.....
दुनिया से उन्हें मिटा दिए जाते थे.
उन्ही बीच में कुछ फौलाद हुए ऐसे जो झुकाये न झुकते थे मिटाए न मिटते थे.
देश हमारा गैरों का न रहे कभी,
मिट्टी इस मुल्क की उनकी आन बान और शान थी.
कोई रौंदे इस मिट्टी को अगर लड़ने को उनमे जान थी.
मिली आजादी थी हमें;
गैरों की दी न ये दान थी.
फ़क्र है जिस आज़ादी पर वह तो वीरों की कुरबान थी.
ये तो थी फ्लैशबैक की कहानी जो हर बार दोहराई जाती है.
१५ अगस्त और २६ जनवरी को सबको याद दिलाई जाती है.
पर सच बतायें तो अभी भी हम गुलाम हैं.
भ्रष्टाचार की लाचारी से सब हुए परेशान हैं.
लाइलाज बीमारी है ये समाधान अब संभव नही..
क्यूंकि इसी बीमारी से ग्रसित हम भी एक इंसान हैं.
पंचतत्व के इस शरीर पर लालच बड़ी हावी है,
प्यार, पैसा और पढाई उसकी सबसे बड़ी लाचारी है.
कहें तो ये तीन चीजें उसके सबसे बड़े हथियार हैं,
पर कमज़ोर हो रही लगन की प्रेरणा से युवा हुए अब लाचार हैं.
पर लाचारियों पे अब हमे नही है रोना..
क्यूंकि एक कोने में हर दिल ने एक आग ऐसा पारा है,
किसी की चिंगारी भड़क रही है तो कोई बना एक ज्वाला है.
ये लौ एक दिन नया परिवर्तन लाएगी,
अपने तांडव की नाच में सारी गुलामियों का नाश कराएगी.
देश ने नयी आज़ादी की आज की फिर मांग है
सुनो ए मुल्क वालों !! सबकी ये सबसे और पहेले अपने से ,
जारी ये फ़रमान है...
आज़ादी की इस टुकड़ी में शामिल बन्दा ही बस इंसान है.. बन्दा ही बस इंसान है..
बने हम खुद फौलाद बनकर कारवां तो बढ़ता जायेगा..
विकसित ये शशक्त भारत फिर से अज़ाद कहलायेगा...
फिर से आज़ाद कहलायेगा.
JAI HIND JAI BHARAT!!