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जब पंख बन गए तो उन्होंने इकेरस को ताकीद की कि तुम्हें मध्यम ऊँचाई पर उड़ना होगा। यदि बहुत नीचे उड़े तो समुद्र की नमी से पंख गीले एवं बोझिल हो जाएँगे और यदि बहुत ऊँचे चले गए तो सूर्य की गर्मी मोम को पिघला देगी। अब पिता-पुत्र दोनों ने एक-एक जोड़ी पंख लगाए और भगवान का नाम लेकर उड़ान भर दी।
इकेरस को उड़ने में बड़ा ही आनंद आने लगा। एक तो कैद से छूटने की खुशी, ऊपर से पंछियों की तरह मुक्त गगन में उड़ने का रोमांच। आह्लादित हो वह अपने पिता की चेतावनी को भूल गया तथा ऊँचा, और ऊँचा जाने लगा। पिता ने उसे रोकने की कोशिश भी की, मगर वह नहीं रुका। फिर वही हुआ जिसका डर था। सूर्य के प्रचंड ताप से इकेरस के पंखों का मोम पिघलने लगा और देखते ही देखते वह पंखविहीन हो समुद्र में जा गिरा। दुःख से बेहाल डेडेलस ने अपने पुत्र का शव पानी में से बाहर निकाला और पास ही के एक द्वीप पर उसे दफना दिया। जिस समुद्र में इकेरस डूबा था, उसका नाम इकेरियन सागर और जिस द्वीप पर उसे दफनाया गया, उसका नाम इकेरिया रखा गया।
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पक्षियों को जन्म से लेकर मृत्यु तक से जोड़ने वाली मान्यताएँ इंसान ने युगों से पाल रखी हैं। दक्षिण पूर्वी एशिया के बॉर्नियो द्वीप के निवासी मानते हैं कि सृष्टि से पहले मात्र एक विशाल जलराशि थी और उस पर उड़ान भरते दो दिव्य पंछी थे आरा और इरिक। एक दिन उन्होंने पानी में दो अंडे तैरते देखे। आरा ने एक अंडा उठाया और उससे आकाश बनाया। इरिक ने दूसरा अंडा लेकर उससे धरती बना डाली। फिर दोनों ने मिलकर धरती की कुछ मिट्टी उठाकर उससे पहले मानव बनाए और अपने कलरव से उनमें प्राण फूँके।
मिस्र में भी सृष्टि के निर्माण में एक पक्षी की प्रमुख भूमिका मानी गई है। इसके अनुसार जब आदिम जलराशि में से पहले-पहल जमीन उभरकर आई, तो उस पर एक दिव्य पक्षी बैठा हुआ था। इसे बेनू पक्षी कहा गया है। इसी ने संसार रचा और फिर उसमें बसने के लिए देवी-देवताओं के साथ मानवों की भी उत्पत्ति की। कई अन्य देशों में मान्यता है कि सबसे पहले एक आदिम महासागर था, जिसमें आसमान से आए अलौकिक पंछियों ने अंडे दिए और इन अंडों में से ही संसार की उत्पत्ति हुई।
अनेक संस्कृतियों में माना जाता है कि धरती पर हर व्यक्ति की आत्मा का आगमन पक्षी के रूप में होता है। इसी प्रकार यह मान्यता भी है कि मनुष्य की मृत्यु के बाद उसकी आत्मा पंछी के रूप में या किसी पवित्र पंछी के मार्गदर्शन में पृथ्वीलोक से स्वर्गलोक के लिए उड़ान भर देती है। मिस्र में फीनिक्स नामक पक्षी जीवन, मृत्यु और पुनर्जीवन के अनंत चक्र का प्रतीक रहा है। माना जाता था कि यह पक्षी हर 500 साल बाद भस्म हो जाता है और फिर अपनी ही राख से पुनः जीवित हो उठता है।
भारतीय पौराणिक मान्यताओं की बात करें, तो अनेक पक्षियों को देवी-देवताओं का वाहन होने का गौरव प्राप्त है। गरुड़ भगवान विष्णु का, तो हंस ब्रह्मा और सरस्वती का तथा उल्लू लक्ष्मी का वाहन है। कार्तिकेय का वाहन मोर है, तो शनिदेव का वाहन कौआ और कामदेव का वाहन तोता।
हंस को इस लिहाज से भी विशेष सम्मान प्राप्त है कि वह पानी में रहते हुए भी अपने पंख सूखे रख लेता है। इस प्रकार यह संसार में रहते हुए भी इससे निर्लिप्त रहने का संदेश देता है। माना जाता है कि हंस में दूध का दूध और पानी का पानी करने की भी अद्भुत क्षमता है। यह सत्य और असत्य में अंतर कर पाने की क्षमता दर्शाता है। मजेदार बात यह है कि कई अन्य देशों में भी हंस को लेकर रोचक कथाएँ प्रचलित हैं।
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आयरलैंड में तो बहुत ही दिलचस्प धारणा है। इसके अनुसार हंस रात को सुंदर स्त्रियों का रूप ले लेते हैं। वे अपना हंस परिधान उतारकर जंगल की झीलों में स्नान करती हैं। यदि कोई पुरुष इनमें से किसी का हंस परिधान चुराकर छुपा दे, तो वह सुंदरी उसके पीछे-पीछे चली आती है और उसकी समर्पित पत्नी की तरह रहने लगती है। वह पक्की गृहस्थन बन जाती है, बच्चे जनती है... लेकिन यदि किसी दिन उसके हाथ वह हंस परिधान लग जाए, तो वह उसे धारण कर पुनः हंस का रूप ले उड़ जाती है और मानव रूप में बिताए गए जीवन की उसकी सारी स्मृतियाँ मिट जाती हैं!
न जाने क्यों इंसान ने जब ईश्वर की कल्पना की, तो उसे आसमान में बैठकर संचालन करने वाला माना। शायद यही कारण है कि आसमान से आती हर चीज में उसने कुछ ईश्वरीय देखा, उसे मानवातीत रिश्तों से जोड़ा। उड़ने की शक्ति वाले हर प्राणी में उसने दैवीय शक्ति को ढूँढा। कोई सौ-सवा सौ साल में इंसान खुद अपने बनाए विमान में उड़ने लगा है। खुद को कुछ-कुछ भगवान भी वह समझने लगा है। बेहतर होगा कि वह इकेरस की गलती ना दोहराए। वह अपनी कल्पना, प्रतिभा और उद्यमशीलता से नई अनुभूतियों, नई उपलब्धियों की मुक्त उड़ान तो उड़े मगर अपने दंभ को इतना ऊँचा ना उड़ने दे कि हकीकत की धधकती ज्वाला उसे भस्म कर डाले।
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