बचपन के दिन भी कितने
सुहाने थे;
हँसते थे हम भी और सभी को
हँसाते थे.
गर गुस्सा हुए हम तो लोग
प्यार से मनाते थे
बचपन के दिन भी कितने
सुहाने थे
वो सूरज को एक टक निगाह से
देखना
वो छोटी बातों को बढ़ा कर
फैंकना
झूठी कई बातें भी कितने
मनमाने थे
बचपन के दिन भी कितने
सुहाने थे
वो रात को चंदा मामा के साथ
चलना
वो मोमबत्तियों से पानी पर
पकौड़े तलना
तारों पर शेर भालू भी आते
थे
बचपन के दिन कितने सुहाने
थे
वो चीटियों की रानी से
मिलना
वो कुत्तों की बातें समझना
जानवरों की बातें भी कितने
जाने थे
बचपन के दिन भी कितने सुहाने
थे
वो अक्कड़ – बक्कड़ के खेल
वो गुड्डे – गुड़ियों का मेल
वो ऊँच – नीच की छलांग
वो छुपम – छिपाई में गुमनाम
वो खेल भी कितने मस्ताने थे
बचपन के दिन भी कितने
सुहाने थे
वो माँ का प्यार, वो दीदी
का दुलार
वो पापा का समझाना, वो भईया
का डांटना
परिवार में हम सबके प्यारे
थे
बचपन के दिन भी कितने
सुहाने थे
यार थे, साथ थे, जब दोस्त
कितने पास थे
अपनी एक छोटी सी दुनिया में
सब अपने ख़ास थे
मस्ती थी, लड़ाई थी, फिर भी
संग बैठ के हमने की पढ़ायी थी
यारी उनके याराने थे..
बचपन के दिन कितने
सुहाने थे..
फिर वो उम्र आई, बचपन ने ले
ली अंगड़ाई
आँख खुली तो जवानी थी छायी
युवा के पथ पर हमने कदम
बढ़ायी
मुस्कान हुई खत्म, खुद को
अकेला पाया
मतलबी लगी इस दुनिया में बस
ये चहेरा ही मुस्कुराया
दोस्ती का प्यार, परिवार का
दुलार..
सब माशुका की चाहत में
डुबाया
दुनियादारी के इस बहाव में,
लक्ष्य है अब डगमगाया
बड़ी होती इस दुनिया में,
पहले से ही बचपन मुरझाया
पर फिर भी .....
हर एक दिल में हमने बचपना
है पाया
किसी को मिल पाया, किसी ने
खोकर पछताया
बचपना ही जवानी को जवाँ,
बुढ़ापे में भी रखे हमे जवान है
बचपन के दिन ही हमारी
मुस्कान है, दिल का बच्चा ही अपनी शान है.