वो दफ़ा भी क्या था जब हम उनसे रोजाना मिलते थे.
मुस्कुराए वो पर दुल्हन की तरह हम खिलते थे.
दिल तो छुई मुई हो चला था, भाव भी क्या मचलते थे.
उनसे मुलाकात के तो हर दिन हम तरसते थे.
नयना ढूंढें उन्हें हर जगह, कभी तो दरसन हो पाएंगे.
प्यासी आखों ये कभी ख़ुशी के पानी पी पाएंगे.
अब तो वो दूर चली, हमने भी उनसे अलविदा कह दिया.
सपना ही रह गया वो जगह; जहाँ मिल रहे दो अब दो जिया.
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