Wednesday, May 17, 2017

चाँदनी अब ढल सी गयी।

कहाँ अपनी चाँदनी सी, घनी अंधियारी छा सी गयी।
जीवन में भटके इस पथिक को कोई उजियारा नहीं दिख रहा है।
इस घुटन में दम घुटने लगा है अब उसका, क्या करे, क्या करे , क्या करे?

No comments: