Sunday, June 23, 2013

खुमारी या प्यार..???

दिल के इस गलियारे में उनका आना जाना रहता है,
शान्त रहती हैं ये महफ़िलें फिर भी दिल गुनगुनाया करता है।
आते हैं जब कभी भी वो इस गलियारे में दो टुक बातें हो जाती हैं,
पर दिल की बात बताने में दिल ये जी चुराता है।
जी तो करता है कि आशियाना बना लूं, इस गलियारे में कहीं...
कैद कर लूं  आपको उसी में वहीँ.
पर देख के आज़ाद पंछी सा आपका खुमार
चहेरे पे हरदम हँसी और दिल में प्यार....
छिपा लेते हैं अपने पागलपन को;
लेकिन चोर ये दिल करता रहता है आपसे प्यार.
कहीं दफ़न न हो जाये ये चाहत मेरी
आसूं भी न बहा पाऊं;
झूठी ये दिल की बातें मेरी
कैसे इन्हें छोड़ पाऊँ।
शिद्दत कहीं कमज़ोर है,
कायनात अब बेचारी है
लाख कोशिशें की हमने पर
                                                    न उतरे, प्यार की ये खुमारी है।।

Tuesday, June 18, 2013

बहुत ही उहापोह है इस लाइफ में भाई...

हेल्लो दोस्तों कैसे हो? क्या है बड़े दिनों बाद वो भी जबरदस्ती खुद को इस पेज पे लिखने के लिए लाया हूँ. साला पूरा का पूरा मेरा टैलेंट ही ख़तम हुआ जा रहा है. कभी मैं चित्रकारी करता था फिर कविता भी करने लगा. और फिर कुछ कुछ लिखने भी लगा. पर आज कल पता नही क्या हो गया इस दिमाग को कि कुछ नया सोच ही नही पा रहा है? तो बात ऐसा है कि अभी मैं सदमे में चल रिया हूँ. सदमा? लगा न अज़ीब! लगना भी चाहिये. असल में बात ये है की इस बंदे का गणित के नाता नही छूट रहा है. न जाने क्यूँ वो मेरे पीछे हाथ दो के बैठी है? पर कभी जब उसे बाहों में लेना चाहूं तो वो बाहों में आती भी नही है. बस मुझे दुःख दे कर के तड़पाती है. चलो round round नही घुमाता हूँ और मैं अपनी औकात में आता हूँ. दरअसल मेरी परेशानी ये है कि मेरा गणित में स्नातक स्तर के आखिरी पड़ाव पे फिर Back लग गया है. मैं सभी विषयों में पास हूँ पर यही आखिरी में गणित में  back लग गया. वैसे प्रयास जारी है हम लोगों का विशेष पुनः परीक्षा करने के लिए. और आशा की किरण भी दिख रही है. पर अब दिक्कत क्या हो रही है? दिक्कत ये है की मैं पढाई नही कर रहा हूँ. अभी मैं यहाँ बनारस में हूँ. किस लिए? असल में मेरा जुलाई में जापानी वाला परीक्षा है दिल्ली में. जिस कारन घर पर  न पढाई कर पाने के बहाने मैं वापस बनारस आ गया था. वैसे ऐसी बात नही की मैं किताब भी उठा के नही देख रहा हूँ. मैं देख रहा हूँ. पर  वो वाली संतुष्टि नही मिल रही जो मिलनी चाहिये. और अगर बात की जाये मेरे  back paper Mathematics कि तो वो तो रत्ती भर भी पढाई नही हो रही है. मुझे इस बात का भी डर लग रहा है की कहीं मुझे एक साल बैठना न पड़ जाये. क्यूंकि ये बैक पेपर शायद अगस्त में हो. जिस कारन रिजल्ट में लेट और फिर किसी अन्य संस्थान या विश्वविद्यालय में दाखिला लेने भी असमर्थ. देखो क्या होता है? मैं हरदम अपनी जिन्दगी को ताने देता रहेता हूँ. कितनी नकारात्मक ऊर्जा भरी है मेरे अन्दर. कभी अच्छा और कुछ मेहनत करने का सोचता ही नही है. इस समय सभी लोग कहीं न कहीं अच्छे संस्थान में चले गये हैं. तो कोई अच्छी सरकारी नौकरी के लिए तैयारी करने जा रहा है. पर हम क्या करेंगे? ये हमे ही नही पता चल रहा है. मेरा विज्ञान से मन हट गया है और मुझे अब जापानी भाषा अच्छी लगने लगी है. और मैं आगे की पढ़ाई इसी जापानी भाषा को ले कर करना चाहता हूँ. पर मुझे अभी भी पता नही क्यूँ ये लग रहा है की मैंने जापानी भाषा इस लिए चुनी क्यूंकि मैं अब विज्ञान संभाल नही पा रहा था. न की इस लिए चुनी क्यूंकि मुझे ये भाषा अच्छी लगती है. उम्र के इस पड़ाव पे उहापोह की ये स्थिति बहुत ही खतरनाक मालूम हो पड़ती है. क्या करें क्या न करें? कुछ समझ नही आता है. बचपन में कुछ और मन था कि बड़े होकर पुलिस में जायेंगे. फिर 8वीं में आया तो मेरा वो सबसे अच्छा समय चल रहा था पढ़ाई में. उस समय मैं प्रोफेसर बनना चाहता था. 10वीं में आने के बाद एक बार एक टीचर की बातें सुन कर मुझे लगा कि मुझे पत्रकार बनना चाहिये. फिर जब मैं 12वीं में आया तो ये विचार किया कि पहले मुझे एक समान्य स्नातक की पढ़ाई करनी चाहिये ताकि मेरे पास एक बैकअप रहे की मैं किसी नौकरी के लिए आवेदन कर सकूँ. पर यहाँ आने के बाद मेरा पढ़ाई में ग्राफ नीचे ही गिरता गया कि अब मैं इस स्थिति आ गया हूँ कि पता नही चल रहा है कि अब मुझे क्या करना चाहिये? किस रास्ते पे जाऊं? क्या मैं जापानी भाषा से अपना आगे का मार्ग प्रशस्त करना ठीक रहेगा? कहीं मैं फिर न डर जाऊं और फिर कहीं का नही रह जाऊं! डर लगता है पर Life is a Race, If you pichding you become BROKEN ANDA. तो लाइफ की रेस ऐसी है की आपको आँख बंद करके चलना पड़ता है. पर जो भी अपनी आँखें खोल के चलता है वही रेस के आखिरी रिबन को छू पाता है. आशा करता हूँ की मैं भी आगे से आँख खोल कर चलूँगा. और माँ की आँख. मैं अपना करियर जापानी भाषा के द्वारा ही बनाऊंगा.